नई दिल्ली: 2024 के लोकसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस समेत कई विपक्षी पार्टियों ने जातीय जनगणना का मुद्दा उठाया था। कांग्रेस के नेतृत्व वाले इंडिया गठबंधन ने वादा किया था कि उनकी सरकार आने पर कास्ट सेंसस कराया जाएगा। अब केंद्र की मोदी सरकार ने इस पर
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नई दिल्ली: 2024 के लोकसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस समेत कई विपक्षी पार्टियों ने जातीय जनगणना का मुद्दा उठाया था। कांग्रेस के नेतृत्व वाले इंडिया गठबंधन ने वादा किया था कि उनकी सरकार आने पर कास्ट सेंसस कराया जाएगा। अब केंद्र की मोदी सरकार ने इस पर अहम फैसला लिया है। सरकार जातीय जनगणना नहीं बल्कि अगले साल बहुप्रतीक्षित जनगणना कराने जा रही है। 2026 तक इसे पूरा करने का लक्ष्य है। सूत्रों के अनुसार, इस प्रक्रिया में जातिगत गणना को शामिल किया जाए या नहीं, इस पर सुझाव मांगे जा रहे हैं। जनगणना के बाद, सरकार चुनाव क्षेत्रों के पुनर्निर्धारण के लिए परिसीमन की प्रक्रिया शुरू करेगी। सूत्रों ने बताया कि इसके बाद महिला आरक्षण लागू किया जाएगा। ये दोनों प्रक्रियाएं जनगणना से जुड़ी हुई हैं।
2002 में, अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली तत्कालीन NDA सरकार ने 84वें संशोधन के माध्यम से परिसीमन को 25 साल के लिए स्थगित कर दिया था। उस समय कहा गया था कि यह 2026 के बाद की पहली जनगणना के प्रासंगिक आंकड़े सामने आने के बाद ही किया जाएगा। इसका मतलब था कि परिसीमन 2031 की जनगणना के बाद किया जाएगा।
सेंसस और परिसीमन पर सरकार की खास तैयारी
हालांकि, सूत्रों के अनुसार, सरकार अब 2027 तक परिसीमन प्रक्रिया शुरू करने और एक साल के भीतर इसे खत्म करने की योजना बना रही है। जिससे अगले यानी 2029 के लोकसभा चुनाव, परिसीमन और महिला आरक्षण विधेयक लागू होने के बाद हो सकें। हाल ही में, भारत के महारजिस्ट्रार और जनगणना आयुक्त मृत्युंजय कुमार नारायण का कार्यकाल इस दिसंबर से आगे अगस्त 2026 तक बढ़ा दिया गया था। हालांकि, विभिन्न वर्गों की ओर से मांग की जा रही कि कास्ट सेंसस को जनगणना में शामिल किया जाए।
आरएसएस ने भी जातिगत जनगणना के विचार का समर्थन किया है। संघ ने कहा कि सही संख्या प्राप्त करना एक सुस्थापित प्रैक्टिस है। हालांकि, एक सूत्र ने बताया कि इसे कैसे किया जाए, इस पर कोई स्पष्टता नहीं है। अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और धर्म की मौजूदा गणना में ओबीसी श्रेणी को जोड़ने, इसमें सामान्य, एससी-एसटी श्रेणियों में उप-वर्गों के सर्वे को शामिल करने जैसे सुझाव हैं। परिसीमन की अपनी समस्याएं होंगी, क्योंकि दक्षिण के राज्य, संसद में अपने राजनीतिक हिस्से पर प्रभाव को लेकर चिंतित है। ऐसा इसलिए क्योंकि उत्तर में अधिक आबादी वाले राज्यों के कारण वहां अनुपातहीन संख्या में सीटें होंगी।
परिसीमन को लेकर दक्षिण की सरकारों के सामने ये मुद्दा
दक्षिण की विभिन्न राज्य सरकारों ने सार्वजनिक रूप से इस चिंता को उठाया है। इसमें आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री और एनडीए की प्रमुख सहयोगी TDP के मुखिया चंद्रबाबू नायडू का भी नाम शामिल हैं। उन्होंने राज्य के लोगों से आबादी के प्रभाव का जिक्र किया, इसके साथ ही अधिक बच्चे पैदा करने के लिए प्रोत्साहित किया है। इस मामले में सरकार के सूत्रों ने कहा कि वे इस चिंता से अवगत हैं और कोई भी उपाय जो दक्षिणी राज्यों को नुकसान पहुंचा सकता है, उससे बचा जाएगा।
एक वरिष्ठ केंद्रीय मंत्री ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्पष्ट कर दिया है कि परिसीमन प्रक्रिया से उत्तर और दक्षिण के बीच कोई विभाजन नहीं होना चाहिए। हो सकता है कि जनसंख्या-क्षेत्र के फॉर्मूले को ठीक करने या बदलने से मदद मिल सके। सभी स्टेकहोल्डर्स के साथ चर्चा होगी और आम सहमति बनेगी। परिसीमन प्रक्रिया के लिए आवश्यक संशोधनों में अनुच्छेद 81 (जो लोकसभा की संरचना को परिभाषित करता है), अनुच्छेद 170 (विधान सभाओं की संरचना), अनुच्छेद 82, अनुच्छेद 55 (राष्ट्रपति चुनाव प्रक्रिया से संबंधित है जिसके लिए मूल्य चुनावी कॉलेज में प्रत्येक वोट का फैसला जनसंख्या के आधार पर किया जाता है), अनुच्छेद 330 और 332 (क्रमशः लोकसभा और विधान सभाओं के लिए सीटों के आरक्षण को कवर करना) में परिवर्तन शामिल हैं।
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राज्य ब्यूरो, रांची। भाजपा ने झारखंड में बांग्लादेशी घुसपैठ और डेमोग्राफी में बदलाव को बड़ा मुद्दा बनाया है। इसे लेकर माहौल भी बना है, लेकिन पार्टी के बागी नेता इस अभियान को पलीता लगा रहे हैं। संताल परगना से कोल्हान तक यही हाल है।